जीरो से हीरो...
मैं लेकर आया हूं "जीरो से हीरो" के तहत समाज के ऐसे लोगो की कहानी जो बहुत निम्न स्तर से संघर्ष करते हुए सफलता के शिखर पर पहुंच कर हीरो बने हैं। इस सफर में यह कहानी हैं डोभी के लाल सिद्धार्थ कुमार दांगी की।
फिल्मी कहानी से कम नहीं हैं सिद्धार्थ की स्टोरी
गया जिले के डोभी थाना क्षेत्र के छोटे से गांव कोसुंभा , पोस्ट घोडाघाट के निम्न वर्गीय किसान परिवार महेंद्र सिंह और श्रीमती सुमित्रा देवी के घर 8 अगस्त, 1988 में जन्में सिद्धार्थ कुमार दांगी की कहानी भी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं हैं।
सिद्धार्थ ने प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल और उच्चतर माध्यमिक शिक्षा शहर के शासकीय विद्यालय में प्राप्त की।
पिता की मौत के बाद भी बड़े भाई के प्रयास से बने बेस्ट वास्तुकार
इसके बाद सिद्धार्थ ने वर्ष 2006 में AIEEE की परीक्षा पास कर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (NIT) पटना से आर्किटेक्चर (वास्तुकार) स्नात्तक किया । लेकिन नित तक पहुंचने का सफर इतना आसान नहीं था क्योंकि जब 10 पास किए थे। उस दौरान ही सिर से पिता का साया कुदरत ने छीन लिया। विषैले सर्प (सांप) के काटने से महेंद्र सिंह की मृत्यु हो गई।
इनके एक मात्र बड़े भाई प्रेम कुमार विद्यार्थी भी घर का पारिवारिक बोझ उठाने लायक नहीं थे । ऐसी स्थिती में भाई के प्रयास और अपनी मेहनत से AIEEE को पास किया । साथ ही चोटी क्लास के बच्चों को पढ़ना शुरू किया । जिस से कुछ पैसे मिलते थे ,उसे से अपना स्वयं का खर्च निकालने की कोशिश की।
सिद्धार्थ इस दौरान कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों में कार्टून करते थे, उन्हें स्कूल प्राचार्य ज्ञान शंकर चौधरी उन्हें। कवि भी कहते थे,क्योंकि सिद्धार्थ को कविताएं लिखने का शौक था। इसलिए उन्हें कवि सिद्धार्थ के नाम से स्कूल में भी जाना जाता था।
2012 में वास्तुकार की डिग्री लेने के बाद सिद्धार्थ का भारतीय सेना में NIT कैंपस प्लेसमेंट हुआ लेकिन सिद्धार्थ को यह नौकरी रास नहीं आई थी। इसके बाद सिद्धार्थ ने 2012 में 'सिद्धार्थ एसोसिएट' के नाम से स्वयं का फर्म शुरू किया परन्तु मना नहीं माना , सिद्धार्थ ने पीजी करने का फैसला किया लेकिन सामने चुनौतियां भी कम नहीं थी।
गरीबी के बावजूद विदेश से की पढ़ाई
पिता का ना होना , परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होना फिर ऊपर से स्पेन की नामी कॉलेज से पढ़ाई करने में लगभग 32 लाख रुपए की व्यवस्था करना वाकई किसी भी एक गरीब परिवार के लिए किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं थी।
सिद्धार्थ का जब मनोबल टूटने लगा तो बड़े भाई प्रेम कुमार विद्यार्थी ने उन्हें विश्वास दिलाया और किसी न किसी तरह बैंक से एजुकेशन लोन मंजूर करवाया । इस प्रकार का लॉन एक ग्रामीण गरीब परिवार जिसकी पारिवारिक संपत्ति लॉन के मुकाबले में एक चौथाई भी नहीं थी।
विदेशी भी देख दंग रह गए
जब स्पेन की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिलने पर और वो भी एक बिहारी को , यह देख कर विदेशी भी आश्चर्य चकित हो गए।
सिद्धार्थ बताते है कि उनका जीवन में काफी मुश्किलें आई मगर उन्होंने हौसला नहीं हारा। उन्होंने कहा “कोई काम नहीं है मुश्किल ,जब किया हो इरादा पक्का” यह विचार उन्होंने स्कूल की दीवार पर भी लिख दिया था।
गया शहर का डिजाइन किया तैयार
सिद्धार्थ ने है प्रधानमंत्री मोदी के अति महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट स्मार्ट सिटी के तहत बिहार की धार्मिक राजधानी बोध गया कि डिजाइन भी तैयार की। जिसका सूबे की नीतीश कुमार सरकार ने भी सरहना की।
“सिद्धार्थ विश्व आर्किटेक्चर का खिताब भी अपने नाम कर चुके हैं।”
वर्तमान में सिद्धार्थ स्वयं की फर्म “सिद्धार्थ एसोसिएट”
के नाम से काम करते है उनके ऑफिस देश सभी प्रमुख शहरों में स्थित हैं जैसे पटना, दिल्ली, चेन्नई , आदि
Thanks
जवाब देंहटाएंGreat job for u also one man army
जवाब देंहटाएंGood
जवाब देंहटाएं