जीरो से हीरो……
कहते हैं प्रतिभा किसी संसाधन की मोहताज नहीं होती बल्कि संसाधन के अभाव में भी इतिहास रच देती हैं। गांव, किसान और गरीब परिवार की बेटी भी एक दिन देश का आइकॉन बन जाती हैं । एक ऐसी ही कहानी हैं देश के चर्चित निर्भया केस कि जानी – मानी सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता सीमा समृद्धि की।
मध्यप्रदेश की सीमा से लगे उत्तरप्रदेश के इटावा जिले के लगभग 50 घरों वाले छोटे से गांव “उग्रपूर" के एक गरीब किसान स्वर्गीय श्री बालादीन कुशवाहा व श्रीमती रामकुआंरी कुशवाहा के परिवार में 2 अक्टूबर 1982 को एक बेटी का जन्म होता है जिसका नाम हैं सीमा समृद्धि । 7 भाई – बहिन में से सीमा सबसे छोटी बेटी हैं।
सीमा का परिवार किसान हैं लेकिन उनके पिता गांव के प्रधान भी रह चुके हैं।
Seema Samridhi (Lawyer, SC) |
आपको बता दे जहां सीमा का जन्म हुआ वह प्रसिद्ध बीहड़ क्षेत्र का हिस्सा हैं। यहां लिंग अनुपात काफी काम होता था। इस क्षेत्र में बेटियों के जन्म होने पर खुशी नहीं बल्कि शोक व्यक्त किया जाता था। ऐसा ही सीमा समृद्धि के साथ भी हुआ लेकिन धीरे- धीरे सब ठीक होता चला गया और सभी परिवार के लोग सीमा से स्नेह करने भी लगे।
8 वीं के बाद पढ़ने वाली अपने गांव की पहली लड़की है सीमा।
सीमा ने प्राथमिक शिक्षा अपने गांव से 1 किमी दूर स्थित सरकारी स्कूल से प्राप्त की। जबकि उच्च माध्यमिक शिक्षा गांव से 3 किमी दूर लखना गांव में स्थित सरकारी गर्ल्स इंटर कॉलेज में प्राप्त कि । सीमा रोज साइकिल से स्कूल आती – जाती थी। इस दौरान सीमा को कई बार पैदल भी सफर तय करना होता था । वैसे 8 वीं कक्षा के बाद गांव की लड़कियों को पढ़ाना भी बंद कर दिया जाता था। लेकिन सीमा पढ़ने में होशियार थी इसलिए उनके शिक्षक जगदीश त्रिपाठी सर ने भी साथ दिया अंतत: उनके पिता ने तय किया कि सीमा को आगे भी पढ़ाया जाएगा।
अपने पाँव की पायल और कान की बालियां बेचकर लिया स्नातक के लिए कॉलेज में एडमिशन
सीमा ने अपना हाइयर एजुकेशन अपने गांव से 3 किमी दूर स्थित लखना के आर गर्ल्स इण्टर कालेज से प्राप्त किया और ग्रेजुएशन गांव से 35 किमी दूर जनपद -औरैया स्थित सरकारी कॉलेज से स्नातक बैचलर ऑफ आर्ट्स (BA) से किया । कॉलेज में प्रथम वर्ष के लिए एडमिशन के लिए जब घर के सदस्यों ने पढ़ाने से मना किया तो सीमा ने अपने पांव कि पायल और कान की बालियां बेचकर एडमिशन की फीस जमा की लेकिन सवाल था रोज कॉलेज आने जाने का खर्चा कैसे निकला जाए तो सीमा ने ₹500 मासिक वेतन में एक स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया। इस दौरान उन्हें अपने मांझले भाई मुलायम सिंह का सपोर्ट मिलता रहा । दुर्भाग्य से इस दौरान उनके पिता का स्वास्थ्य खराब रहने लगा ।
रोजाना 160 किमी का सफर तय कर किया कानपुर विश्वविद्यालय से लॉ
सीमा ने तय किया कि उन्होंने लॉ में एलएलबी करना हैं लेकिन आर्थिक स्थित ठीक नहीं थी ऊपर से कुछ समय पहले पिता जी का स्वर्गवास (2002) हो चुका था और साथ देने वाला कोई था तो वह कुछ कर दिखाने का जुनून।
उन्होंने कानपुर यूनिवर्सिटी से लॉ करने का निर्णय लिए और उसके लिए एंट्रेंस एग्जाम का फॉर्म भरा और क्वालिफाई भी कर लिया लेकिन अब समस्या थी कि यूनिवर्सिटी कि फीस कैसे दी जाए? ऐसे में उनकी बड़ी बहिन रमाकांती और जियाजी रविन्द्र जो इटावा शहर में रहते हैं, उन्होंने सीमा की फीस जमा की और उन्हें प्रवेश भी मिल गया। लेकिन समस्या यही खत्म नहीं हुई बल्कि असली परिश्रम तो अब शुरू हुआ था । एडमिशन के बाद सबसे बड़ा सवाल था जीवनयापन और अपना अन्य खर्चे का लेकिन जैसे तैसे एक साल निकाला ।
कानपुर इटावा से लगभग 160 किमी दूर है रोज आने - जाने की समस्या थी लेकिन कुछ करने कि ज़िद के आगे यह कुछ नहीं था। सीमा ट्रेन के द्वारा इटावा से कानपुर कॉलेज के लिए आती - जाती थी।
पार्ट टाइम नौकरी कर किया कानपुर विश्वविद्यालय से लॉ में एलएलबी
एलएलबी के प्रथम वर्ष पूर्ण होने के बाद वह कानपुर ही रहने लगी। साथ अपना खर्च (जैसे खाने – पीने और रहने) निकल जाए इसके लिए एक लोकल मैगज़ीन में ₹2500 मासिक वेतन पर मार्केटिंग के लिए पार्ट टाइम जॉब करना स्टार्ट कर दिया। यही उन्होंने सोचा क्यों न जर्नलिज्म का कोर्स भी कर लिया जाए ।
सीमा ने वर्ष 2005 में लॉ तथा 2006 में बैचलर ऑफ जर्नलिज्म की डिग्री राजर्षिटंडन ओपन यूनिवर्सिटी इलाहाबाद प्राप्त की।
इलाहाबाद कोर्ट से इन्टर्नशिप किया साथ ही सिविल जज की तैयारी
एलएलबी हो जाने के बाद सीमा इलाहबाद रहने लगी और वही हाई कोर्ट इंटर्नशिप किया। इसी दौरान उन्होंने सिविल जज की परीक्षा की तैयारी करना शुरू कर दिया और पहले ही प्रयास में टॉप 400 में शामिल होकर एग्जाम का प्रेलिम्स टेस्ट पास किया उसके बाद उसके कुछ और भी फेस क्वालिफाई किए लेकिन फाइनल सिलेक्शन से चूक गई।
आईएएस बनना भी चाहती थी एड्वोकेट सीमा
2009 में सीमा ने तय किया कि उन्हें भारतीय प्रशासनिक सेवा में अधिकारी बनना हैं और इस लक्ष्य को पाने के लिए उन्होंने कानपुर से राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को अपनी कर्मभूमि के रूप में चुना। 2009 में सीमा ने आईएएस कि तैयारी के लिए दिल्ली के नामी कोचिंग संस्थान दृष्टि आईएएस में प्रवेश ले लिया। साथ ही अपने एक्सपेंसेस निकाल सके इसके लिए एक दिवसीय परीक्षा की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों को सामान्य अध्ययन पढ़ाना शुरू कर दिया। क्योंकि उन्होंने राजनीति विज्ञान में मास्टर ऑफ आर्ट यानी एमए किया हुआ था।
वर्ष 2011 में पहली बार यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा दी लेकिन प्री भी क्लीयर नहीं हो सका। इसके बाद 2012 में फिर सिविल सेवा परीक्षा दी और प्रीलिम्स क्वालिफाई किया । इस दौरान उन्होंने सिविल जज की भी परीक्षाएं दी लेकिन फाइनल सिलेक्शन नहीं हो सका
2014 में C-SAT को लेकर हुए आंदोलन में बनी पोस्टर गर्ल।
सीमा में स्कूल के समय से नेतृत्व क्षमता थी, स्कूल के दौरान वो स्काउट गाइड में गवर्नर अवार्ड प्राप्त कर चुकी थी तो वहीं कॉलेज के टाइम में भी स्काउट गाइड टीम(रोवर्स रेंजर) की कमान संभाल चुकी थी। जब 2014 में C-SAT को लेकर छात्र आंदोलन और पीएम आवास का घेराव हुआ उस समय भी सीमा ने सक्रिय भागीदारी निभाई। इस दौरान सीमा पोस्टर गर्ल के रूप में समाचार पत्रों कि सुर्खियां बनी।
जून 2014 में C-SAT यूपीएससी को लेकर पीएम निवास के सामने प्रदर्शन करते हुए सीमा |
निर्भया ज्योति ट्रस्ट की लीगल एडवाइजर बनी और निर्भया केस से जुड़ाव
जब 16 दिसंबर 2012 को देश की राजधानी दिल्ली में रात्रि 8 बजे के करीब बस सफर कर रही निर्भया (परिवर्तित नाम) के साथ 6 लोगों ने चलती बस सामूहिक दुष्कर्म ही नहीं किया बल्कि उसके गुप्तांगों में लोहे की रॉड से भी प्रहार किया था। घटना के कुछ दिन बाद निर्भया ने दम तोड दिया था। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। पूरे देश में निर्भया को न्याय दिलाने के लिए आंदोलन चले जिसमें सीमा ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
इसी दौरान सीमा समृद्धि का निर्भया के माता- पिता से एक परिवार के सदस्य की तरह नजदीकी बढ़ती गई और 2014 में सीमा ने निर्भया ज्योति ट्रस्ट की कानूनी सलाहकार बनने के साथ ही निर्भया के केस से भी जुड़ गई। यही से हुई निर्भया को न्याय दिलाने की अहम शुरुआत।
टॉप 25 महिलाओं में बनाई जगह
निर्भया के दोषियों को फांसी होने के बाद सीमा पूरे देश में एक स्तर सी बन गई। सोशल मीडिया पर उनके है चर्चे होने लगे। देश की जानी – मानी पत्रिका “फेम इंडिया मैगजीन के एशिया सर्वे पोस्ट – 2020 में सीमा समृद्धि को टॉप 25 शक्तिशाली महिलाओं की सूची में शामिल किया गया।
सीमा समृद्धि का यह पहला केस था जो उन्होंने नि:शुल्क लड़ा था और बड़े लंबे संघर्ष के बाद अंत में उन्हें सफलता भी प्राप्त हुई। सीमा जी दांगी प्रवाह के संपादक से बातचीत में बताया की उन्होंने एक मां (आशा देवी, निर्भया की माता) से किया हुआ वादा पूरा किया, निर्भया को नहीं मिला न्याय बल्कि अपराध करने वाले दोषियों को उनके किए की सजा मिली हैं।
वे कहती हैं कि निर्भया का केस लड़ना उनके लिए भी एक बड़ी चुनौती थी। इस लड़ाई के दौरान निर्भया के परिवार के साथ और खासकर उसकी मां के साथ उनका एक भावनात्मक संबंध बन गया है।
20 मार्च हो हुई दरिंदो को फांसी
निर्भया केस के 6 आरोपियों में 1 नाबालिक होने के कारण बाल सुधार गृह भेज दिया गया था जबकि 5 को फांसी की सजा पटियाला हाउस कोर्ट ने सुनाई थी। जिसमें से एक अपराधी ने जेल में ही आत्म हत्या कर ली थी। बाकी के चार दोषियों को 20 मार्च 2020 फांसी हो गई । लेकिन यह लड़ाई इतनी आसान नहीं रही, 7 साल 3 माह 4 दिन और 3 डेथ वारंट जारी होने के बाद निर्भया के गुनहगारों को उनके किए की सजा मिली हैं।
फांसी के बाद निर्भया की मां ने भी सबसे पहले सीमा समृद्धि को ही धन्यवाद कहा है। निर्भया की मां ने कहा कि सीमा के बिना यह संभव नहीं था। निर्भया की मां आशा देवी सीमा को बेटी के समान मानती है।
उन्होंने बताया कि उन्हें शुरू से ही विश्वास था कि दोषियों को फांसी जरूर होगी और हुआ भी ऐसा ही। उन्हें इस दौरान उनके पति राकेश कुमार का भी सपोर्ट मिला जिन्होंने उनका हौसला बढ़ाया। जब – जब केस में नाजुक मोड़ आया।
सीमा समृद्धि अभी दिल्ली में रह रही हैं साथ ही कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर उनकी कानूनी सलाहकार के रूप कार्य कर रही हैं। सीमा हमेशा महिला सशक्तिकरण और युवाओं की भागीदारी को लेकर समर्थक रहीं हैं। मैं सीमा समृद्धि को इस उपलब्धि के लिए बधाई देता हैं और उज्ज्वल भविष्य की मंगलमय कामना करता हैं।
(Note Story Covered by Devraj Dangi, Editor Dangi Pravah Magazine)
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