क्या पुलिस को सौंप दे सारे न्यायिक अधिकार और न्यायपालिका पर डाल दिया जाए ताला ?
पिछले सप्ताह हैदराबाद में एक महिला पशु चिकित्सा के साथ दरिंदगी की वारदात कर हत्या को अंजाम देने वाले चारो आरोपी पुलिस एनकाउंटर में मारे गए हैं। यह एनकाउंटर नेशनल हाइवे-44 के पास गुरुवार देर रात हुआ, पुलिस आरोपियों को एनएच-44 पर क्राइम सीन रिक्रिएट कराने के लिए लेकर गई थी। पुलिस के मुताबिक चारों आरोपियों ने मौके से भागने की कोशिश की इस दौरान मुठभेड़ में पुलिस ने चारों आरोपियों को ढेर कर दिया है।
हैदराबाद पुलिस द्वारा की गई कार्रवाही का पुरे देश में स्वागत किया जा रहा हैं। पीड़िता डॉ. दिशा के परिजन बोले की उनकी बेटी के कातिलों को सजा मिल गई। हर देशवासी चाहता हैं की अपराधियों को सजा मिले ताकि भविष्य में इस तरह की घटनाओ पर अंकुश लग सके। स्वाभाविक रूप से देश में इस तरह की दरिंदगी के खिलाफ गुस्सा हैं। सभी चाहते हैं की आपराधियो को कठोर से कठोर दंड मिलना चाहिए। लेकिन दंड भारतीय संविधान अनुसार हो और अगर संवैधानिक संशोधन की जरुरत हैं तो वह कार्य भी संसद को करना चाहिए। लेकिन इस तरह पुलिस को एनकाउंटर के बहाने कानून अपने हाथो में लेने का अधिकार नहीं होना चाहिए।
कहा तक ठीक हैं पुलिस एनकाउंटर ?
हैदराबाद रेप के आरोपियों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया हैं। लेकिन सवाल यह हैं की क्या पुलिस द्वारा की गई कार्रवाई ठीक। क्या न्याय करने का फैसला पुलिस को सौप देना चाहिए। सवाल यह भी हैं कि पुलिस कस्टडी से कैसे भाग सकते हैं आरोपी ? जब हैदराबाद पुलिस चारो आरोपियों को अपने साथ वारदात स्थल पर ले गई और घटना को रिक्रिएट करने लगी तब आरोपी पुलिस की गिरप्त से भागने लगे। अगर आरोपी पुलिस हिरासत से भाग रहे थे तो फिर पुलिस क्या कर रही थी ? मान लेते हैं आरोपी भाग रहे थे, तो गोली चलाने की क्या जरुरत पड़ी ? अगर उन्होंने पुलिस पर हमला कर दिया और पत्थर मारने लगे थे तो पुलिस उनके पैरो पर भी गोली चला सकती थी। जिससे आरोपी पकडे भी जाते और एनकाउंटर में किसी की मौत भी नहीं होती। सवाल यह भी हैं की चारो ही आरोपी कैसे एनकाउंटर में मारे जा सकते हैं, अगर एक या दो आरोपी भी मारे जाते तो बात समझ में आ सकती थी। क्या पुलिस ने जानबूझकर तो इस वारदात को अंजाम नहीं दिया, ताकि पब्लिक की नज़र में हीरो बना जा सके।
क्या हर आरोपी, अपराधी होते हैं ?
हैदराबाद रेप केस में भी, अभी तक पुलिस कस्टडी में रह रहे चारो आरोपी थे, उन पर अभी तक आरोप सिद्ध नहीं हुए थे।फिर भी पुलिस ने आरोपियों को पकड़ने का कोई अन्य प्रयास किए बिना एनकाउंटर का कदम उठा लिया। लेकिन पुलिस ने अपराध सिद्ध होने से पहले ही आरोपियों को मार दिया जो एक लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं हो सकता। संविधान कहता हैं की, आरोप तो किसी पर भी लगाए जा सकते हैं, लेकिन आरोप कितने सही हैं यह तो न्यायपालिका तय करेगी। इसलिए हमारे संविधान में हर आरोपियों को अपने तर्क रखने का पूरा अवसर दिए जाते हैं ताकि कोई निर्दोष को दण्डित नहीं किया जा सके।
रेयान इंटरनेशनल स्कूल के केस में झूठे निकले थे पुलिस के आरोप
हरियाणा के गुड़गांव के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में वर्ष 2017 में हुए प्रद्युमन मर्डर केस में पुलिस ने बस कंडक्टर को आरोपी बनाया था और जब सीबीआई ने जाँच की तो उन्होंने पुलिस द्वारा की गई कार्रवाही को गलत बताया। सीबीआई ने कहा की आरोपी बस कंडक्टर अशोक निर्दोष हैं जबकि अपराध स्कूल के ही एक छात्र ने पेरेंट्स टीचर्स मीटिंग और परीक्षा की तारीख टालने के लिए किया था। रेयान स्कूल केस में पुलिस ने पूरी घटना को जनता के दबाव में किया था। लेकिन पुलिस के हीरो बनने के कारण निर्दोष बस कंडक्टर का चरित्र हनन हुआ, वो जेल में रहा उसका क्या ? यह तो एक केस हैं ऐसे कही मामले हैं, जिसमे पुलिस ने अपनी शक्ति का दुरूपयोग किया हैं।
देश में सर्वोच्च न्यायपालिका या फिर पुलिस
संविधान के अनुसार देश में किसी भी मामले में फैसला सुनाने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ न्यायपालिका को हैं तो फिर ऐसे में कानून के रक्षक ही कैसे कानून का उल्लंघन कर सकते हैं। अगर पुलिस इस तरह की घटना को अंजाम देती हैं और ऑन द स्पॉट पर खुद न्यायपालिका का कार्य करने लगे जाए तो यह ठीक नहीं हैं। इस तरह की घटना के बाद लगता हैं की न्यायपालिका पर ताला डाल देना चाहिए और सभी जजों को घर बैठाकर सारे अधिकार पुलिस को दे देना चाहिए ताकि करदाताओं के पैसे और आम जनता का समय दोनों की बचत हो सके। क्योंकि पुलिस की कार्रवाही से तो ऐसी मंशा जाहिर हो रही हैं।
हर व्यक्ति रेप जैसी घटनाओ के निंदा करता हैं, लेकिन पुलिस के इस बर्ताव की भी आलोचना होनी चाहिए। किसने अपराध किया हैं या नहीं यह तो कोर्ट तय करेगा। पुलिस का काम हैं सबूत एकत्र करना नाकि फैसला सुनना। यह सही हैं की देश की न्याय व्यवस्था को इस बात पर ध्यान देना होगा कि गंभीर अपराधियों को तय समय में सजा मिले क्योंकि ''न्याय में देरी भी अन्याय'' के श्रेणी में आता हैं। ताकि लोगो का विश्वास न्याय तंत्र पर बना रहे।
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