जीवन में व्यक्ति हो या समाज हो, हर किसी को अगर उसे दुनिया से मुकाबला करना हैं तो हमें जीवन की कुछ बुनियादी बातों और घटनाओं का अनुकरण करना होगा।
हमें, अपने अतीत में घटी घटनाओं से सीखकर वर्तमान समय में भविष्य को ध्यान में रखते हुए कोई निर्णय लेना चाहिए। अगर हम अतीत की घटनाओं से सीख नहीं लेंगे तो संभावना रहती हैं कि हम भविष्य में भी उसी गलती को पुनः दौहरा सकते हैं। इसलिए वर्तमान समय में कोई भी निर्णय लेते वक्त हमें अतीत के अनुभव के आधार पर भविष्य के लिए कोई निर्णय लेना चाहिए।
उदाहरण के लिए हमारे समाज ने अतीत में कई जगहों पर शासन किया, हम सत्ताधारी वंश से आते हैं। हमारे समाज में कई राजा - महाराजा हुए, उनके द्वारा निर्मित कई सारे दुर्ग, किले, महल आज भी हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि हमारे समाज के लोग अतीत यानी उस समय इतिहास में हमारे गौरवशाली इतिहास को दर्ज नहीं कर पाया।
हमारे समाज से आने वाले कई वीर - वीरांगनाओ ने आजादी की लड़ाई लड़ी, चाहे वह 1857 में अंग्रेजो से झांसी कि रानी लक्ष्मीबाई बाई के साथ दांगियो के बलिदान की बात हो या फिर मुस्लिम आक्रांताओं से विराटा की पद्मिनी यानी कुमुद की बात। लेकिन बात और कारण वहीं हैं कि इन सभी घटनाओं को इतिहास में उचित स्थान नहीं मिल पाया क्योंकि हमने अतीत में इतिहास को संजोया नहीं।
और हम आज भी अतीत जैसी गलती को पुनः दौहरा रहे हैं, जब पूरी दुनिया परिवर्तन के दौर से गुजर रही हैं। हर ओर युवा वर्ग को, समाज की प्रतिभाओं उचित अवसर दिए जा रहे लेकिन हमारा समाज आज यहां भी मौन हैं। हम, हमारे पास जो इतिहास उपलब्ध हैं उसे भी युवा पीढ़ी को परोसने में असफल साबित हो रहे है। हम हमारी बची हुई ऐतिहासिक धरोहरों का संरक्षण करने में असफल साबित हुए हैं।
मेरे कहना का तात्पर्य यह है, कि हमने जो अतीत में गलती कि हैं उसे हम फिर से क्यों रिपीट कर रहे, क्यों नहीं हम अतीत से सीखना चाहते हैं। हम क्यों वक़्त से कदमताल मिला लाने में कामयाब नहीं हो रहे हैं।
आइएं हम जो कार्य करे उसमे भविष्य में लाभ की संभावना को तलाशते हुए, अतीत में हुई गलतियों से सीखते हुए आगे बढ़े। राष्ट्र निर्माण हो, समाज निर्माण हो या व्यक्ति निर्माण सब में अतीत, वर्तमान और भविष्य के बीच तालमेल होना अति आवश्यक है।
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