भारतीय संस्कृति में विवाह एक ऐसा पवत्र बंधन होता है, जिसमें मर्यादा, अनुशासन, कर्तव्य, सहनशीलता, धैर्य सब कुछ समाहित है। इसे भारतीय संस्कृति में सात जन्मों का बंधन माना गया हैं। विवाह एक ऐसा बंधन हैं जो एक दूसरे के जीवन के लिए समर्पित पति - पत्नी का रिश्ता दायित्व निर्वाह करने की प्रेरणा देता है, जीवन को एक उचित उद्देश्य देता है। पति और पत्नी का जीवन एक तरह दोनों की साँझा विरासत होती हैं।
हालांकि आज के इस तथाकथित आधुनिक दौर में छोटी - छोटी बातें भी कटुता की वजह बन जातीं हैं और पति - पत्नी के पवित्र रिश्ते में दरार आने लगती हैं। इससे यह समझ में आता है कि, इस रिश्ते में वो समर्पण या सहनशीलता नहीं है, जो इंसान को बांधकर रख सके। यह रिश्ता प्रेम और स्नेह के बंधन से नहीं बल्कि स्वार्थ और लोभ के लिए होता हैं, जब वह पूरा हो जाता हैं तो एक - दूसरे की जीवन में अहमियत शायद ख़त्म होने लगती हैं। वैवाहिक बंधन को किस तरह सहेजकर रखा जा सकता है, विवाह और पति - पत्नी का जीवन कैसा हो यह हमें रामायण सिखाता हैं। इसकी प्रेरणा हम भगवान श्रीराम और माता सीता के वैवाहिक जीवन से मिलती हैं, जहाँ त्याग, स्नेह और समर्पण देखने को मिलता हैं।
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भगवान राम और माता सीता का वैवाहिक रिश्ता हमें ये सिखाता हैं कि पति - पत्नी को सुख और दुःख जैसी दोनों ही विषम परिस्थितयों में एक - दूसरे साथ रहना चाहिए। जब मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम वनवास जा रहे थेतो , तो उन्होंने समय सीता जी ने कहा कि उन्हें राजमहल में ही रहना चाहिए, परन्तु सीता माता भगवान् राम के साथ वन को गई। सीता जी ने सारे राजसी वैभव, सुखों को त्याग अपने पति श्री राम के साथ वन में रहना पसंद किया। रामायण का प्रसंग हमे त्याग और समर्पण सिखाता हैं जो जीवन साथियों के बीच होना चाहिए।
जब लंकापति रावण माता सीता का हरण कर लंका ले गया तो उनको वापस लाने का श्रीराम ने अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया कि, वो जब तक सीता को लंका से वापस नहीं लाते चैन नहीं बैठेंगे और माता सीता को भी अपने पति श्रीराम पर यह विश्वास था कि श्रीराम उनको लेने अवश्य आएंगे और अंततः हुआ भी यही श्रीराम समुन्द्र पार कर लंका गए और माता सीता को लेकर आये।
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जब भगवान् राम, माता सीता और भाई लक्ष्मण अयोध्या आये तो उसके कुछ समय बाद एक धोबी के चुगली करने पर माता सीता को पुनः वनवास जाना पड़ा। अगर श्री राम चाहते तो एक नहीं कई विवाह कर सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने सीता को वन जाने का आदेश एक राजा के रूप में दिया था लेकिन पति के रूप में तो सीता से स्नेह करते थे। यही कारण था कि श्रीराम ने विवाह नहीं किया।
वैवाहिक जीवन में सबसे पहले विश्वास होना चाहिए हैं एक - दूसरे पर, फिर निःस्वार्थ प्रेम, स्नेह, अपनापन, एक - दूजे के प्रति ईमानदारी, यह सारी बाते पति - पत्नी के बीच अवश्य होनी चाहिए, जो रिश्तों को मजबूती देती हैं। ये सारी समस्याओ की जड़ अहंककर हैं, और पति - पत्नी का जीवन ही एक - दूसरे के लिए समर्पित होता हैं तो फिर अहंकार, झूठ वहा कैसा। इसीलिए छोटी - छोटी बातों को वैवाहिक जीवन में बड़ी वजह नहीं बनने देना चाहिए, तभी तो एक वैवाहिक रिश्ता सुखमय, सफल हो सकता हैं।
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