इंदौर की प्रमुख हस्तियां
१. श्रीमती सुमित्रा महाजन
श्रीमती सुमित्रा महाजन (पूर्व लोकसभा अध्यक्ष) |
चेहरे पर जिनके सदैव सौम्यता हो ,मधुरता ,स्नेह की मिठास जिनके व्यक्तित्व में घुली हो वो नाम हैं देश की महशूर नेत्री , देश की दूसरी महिला (प्रदेश से की पहली) लोकसभा स्पीकर और इंदौर की पूर्व सांसद श्रीमती सुमित्रा महाजन का। सुमित्रा महाजन को लोग प्यार से 'ताई' के नाम से बुलाते हैं , ताई देश की एक मात्र ऐसी महिला जो लगातार ८ बार एक संसदीय क्षेत्र से संसद सदस्य के रूप में चुनी गई। २०१४ लोकसभा चुनाव ४.५० लाख से भी ज्यादा वोटो से जीत हासिल कर, प्रदेश में सबसे ज्यादा वोटो से जीत प्राप्त करने का गौरव पाया।
व्यक्तिगत परिचय :
श्रीमती सुमित्रा महाजन का जन्म १२ अप्रैल १९४३ को महाराष्ट्र के चिपलून में श्रीमती उषा और पुरुषोत्तम साठे के घर हुआ। उनका विवाह २९ जनवरी १९६५ में इंदौर निवासी जयंत महाजन के साथ हुआ।महाजन के दो संतान हैं। श्रीमती सुमित्रा महाजन ने इंदौर के देवी अहिल्या विश्व विद्यालय से स्नातकोत्तर और एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की।
राजनितिक परिचय :
- ताई इंदौर नगर निगम की डिप्टी मेयर भी रह चुकी हैं।
- सुमित्रा महाजन पहली बार १९८९ का आम चुनाव में भाग लिया और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश चंद्र सेठी को पराजय किया।इससे पूर्व महाजन इंदौर विधानसभा से लगातार तीन विधानसभा चुनाव हर चुकी थी।
- श्रीमती महाजन १९८९ से लेकर २०१९ तक इंदौर लोकसभा सीट से सांसद बनकर लोकसभा में इंदौर का प्रतिनिधित्व किया। इस दौरान ताई ने ८ चुनाव लड़े लेकिन कभी चुनाव नहीं हारी।
- ताई देश पहली महिला हैं जो लगातार ८ बार सांसद चुनी गई और वो भी एक ही सीट से।
- २००२ से २००४ तक अटल बिहारी जी की सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल हुई और उन्हें मानव संसाधन, संचार और पेट्रोलियम जैसे अहम् मंत्रालयों की जिम्मेदारी सौपी गई।
- २०१४ में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के मंदिर के निम्न सदन यानी लोकसभा की निर्विरोध स्पीकर चुनी गई। इसी के साथ देश की दूसरी महिला और प्रदेश से पहली लोकसभा स्पीकर बनने का गौरव प्राप्त किया।
- इसके अलावा ताई भारतीय जनता पार्टी के संसदीय बोर्ड सहित संघठनो के विभिन्न पदों पर रह चुकी हैं।
- ताई लोकसभा और संसद की कई समितियों की सदस्य और अध्यक्ष भी रही हैं।
२. लता मंगेशकर
भारत रत्न और स्वर कोकिला लता मंगेशकर भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे बेहतर और प्रसिद्ध गायिका हैं, जिनके प्रशंसक पूरी दुनिया में मौजूद हैं। जो अपनी वाणी की मधुरता में संगीत रूपी मिठास घुल कर लोगो के दिल में घर बना लेती नहीं,जिनका छः दशक का गायिका के रूप में बेमिसाल लम्बा सफर रहा हैं। जिन्हे संगीत अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर से विरासत में मिला ,उस विरासत को उन्होंने बखूबी आगे बढ़ाने का कार्य किया।
व्यक्तिगत जीवन परिचय
स्वर कोकिला लता मंगेशकर का जन्म २८ सितम्बर ,१९२९ को इंदौर के एक मराठी परिवार में श्री दीनानाथ मंगेशकर (पिता) और शेवंती मंगेशकर (माता) के घर हुआ। इनके पिता भी एक महशूर गायक रहे हैं। लता मंगेशकर ५ बहिन - भाई हैं ,जिनमे से बहन आशा भोसले और भाई हृदयनाथ मंगेशकर भी जाने - माने गायक हैं।
स्वर कोकिला लता मंगेशकर |
संगीत के क्षेत्र की उपलब्धिया :
इन्होंने हिन्दी भाषा में पहला गाना 'माता एक सपूत की 'दुनिया बदल दे तू' मराठी फिल्म 'गाजाभाऊ' (1943) के लिए गाया। इसके बाद लता मंगेशकर मुंबई चली गईं। यहां उन्होंने हिन्दुस्तान क्लासिकल म्यूजिक के उस्ताद अमानत अली खान से क्लासिकल संगीत सीखना शुरू कर दिया। लता मंगेशकर ने अपने संगीत करियर की शुरुआत मराठी फिल्मों से की। इसके बाद इन्होंने विनायक की हिन्दी फिल्मों में छोटे रोल के साथ-साथ हिन्दी गाने तथा भजन गाए।
लोकप्रिय गीत और भजन :
- 1961 में लता ने लोकप्रिय भजन 'अल्लाह तेरो नाम' और 'प्रभु तेरो नाम' जैसे भजन गाकर एक नई पहचान संगीत के क्षेत्र में स्थापित की।
- 1963 में तत्कालीन देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की उपस्थिति में देश का सबसे जीवंत गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों' गाया।कहते हैं की इस गाने के बाद नेहरूजी की आंखों से आंसू बह निकले थे।
- 1960 से लेकर 1980 के दौरान लता जी ने कई संगीतकारों के साथ काम किया और कई हिट गाने गाए जिसमें मदन-मोहन, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, सलिल चौधरी तथ हेमंत कुमार के साथ कई बंगाली व मराठी गाने भी गाए।
- 1980 में लता ने सिलसिला, फैसला, विजय, चांदनी, रामलखन और मैंने प्यार किया जैसी हिट फिल्मों के लिए अपनी आवाज दी। 1990 में उन्होंने आनंद-मिलिंद, नदीम-श्रवण, जतिन-ललित, दिलीप-समीर सेन, उत्तम सिंह, अनु मलिक, आदेश श्रीवास्तव तथा एआर रहमान जैसे संगीतकारों के साथ काम किया और जगजीत सिंह, एसपी बालसुब्रमण्यम, उदित नारायण, हरिहरन, कुमार शानू, सुरेश वाडकर, मो. अजीज, अभिजीत भट्टाचार्य, रूपकुमार राठौड़, विनोद राठौड़, गुरदास मान तथा सोनू निगम के साथ कई गाने गाए।
- 1943 से लेकर आज तक लता जी कई गाने और भजनो को अपनी मधुर आवाज़ देकर संगीत में बंधा हैं।
देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान से भी हुई लता सम्मानित
भारतीय संगीत में महत्वपूर्ण योगदान देने के लिए लता मंगेशकर को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न समेत कई पुरुस्कार और अवार्ड से नवाज़ा जा चूका हैं जैसे प:- 1969 में पद्मभूषण, 1999 में पद्मविभूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड, 1999 में महाराष्ट्र भूषण अवॉर्ड, 2001 में भारतरत्न, 3 राष्ट्रीय फिल्म अवॉर्ड, 12 बंगाल फिल्म पत्रकार संगठन अवॉर्ड तथा 1993 में फिल्म फेयर लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार सहित कई अवॉर्ड जीत चुकी हैं। लता ने 1948 से अब तक लगभग ४०००० हजार से ज्यादा गाने गाए हैं, जो एक रिकॉर्ड हैं।
३. देवी अहिल्या बाई होल
इंदौर की शासिका देवी अहिल्या बाई जितनी महान शासक और महारानी के रूप में जानी जाती हैं उससे ज्यादा वह अपने व्यक्तित्व और अपने द्वारा किये कार्य से जाती हैं। देवी अहिल्या बाई एक धार्मिक, न्यायप्रिय, जनता के बीच लोकप्रिय शासिका थी , उन्होंने अपने कार्यकाल में अनेक मंदिरो, घाटों, मठो, धर्मशालाओ का निर्माण कराया, साथ अपने राज्य को मुस्लिम आक्रमणकारियों से भी बचाया। उनके किये गए कार्यो के कारण वह आज भी लोक प्रिय हैं, लोगो उन्हें राजमाता और लोकमाता देवी अहिल्या बाई के नाम से पुकारते हैं।
महारानी देवी अहिल्या बाई होल्कर |
व्यक्तिगत परिचय :
- देवी अहिल्या बाई का जन्म 31 मई,1725 में महाराष्ट्र के अहमदनगर छौंडी नामक गांव में पिता मानकोजी शिंदे ,जो गाँव के पाटिल थे उनके घर हुआ था जबकि देहांत 13 अगस्त 1795 को हुआ।
- देवी अहिल्या बाई का विवाह इंदौर के संस्थापक मल्हार राव होल्कर के पुत्र खंडेराव होल्कर के साथ हुआ।
- इनके दो संतान थी एक पुत्र मालेराव और पुत्री मुक्ताबाई ।
- देवी अहिल्या बाई ने 1 दिसंबर 1767 से 13 अगस्त 1795 तक शासन किया।
महारानी के रूप में :
- 1754 में पति खांडेराव की मृत्यु हो , उसके कुछ दिन बाद देवी अहिल्या बाई इंदौर की शासिका बनी और 1995 तक बड़ी कुशलता के साथ राज्यव्यवस्था को संभाला।
- 1766 में पुत्र मालेराव की मृत्यु हो गई उसके बाद 1767 में तुकोजी राव को सेनापति बनाया।
- अपने कालखंड में देवी अहिल्या बाई ने अनेक जनहित और प्रजा के लिए कार्य किया , कई मंदिरो, मठो, घाटों और धर्मशालाओ आदि का निर्माण किया।
- अहिल्या बाई ने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया। शिव की भक्त अहिल्याबाई का सारा जीवन वैराग्य, कर्त्तव्य-पालन और परमार्थ की साधना का बन गया।
- देवी अहिल्या बाई भगवान शिव की भक्त थी, इसलिए वह अपनी राजाज्ञाओं पर अपने हस्ताक्षर के स्थान पर जय शंकर लिखती थी।
- अहिल्या बाई ने अपनी सेना में महिलाओ को भी शामिल किया और उन्होंने स्त्रियों की सेना बनाई।
- महेश्वर को अपनी राजधानी बनाई और नर्मदा नदी के तट पर अहिल्या महल बनवाया।
योगदान और उपलब्धिया :
अहिल्याबाई ने अपने राज्य की सीमाओं के बाहर भारत-भर के प्रसिद्ध तीर्थों स्थानों में मंदिर बनवाए, घाट बँधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण किया, मार्ग बनवाए-सुधरवाए, भूखों के लिए अन्नसत्र (अन्यक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। आत्म-प्रतिष्ठा के झूठे मोह का त्याग करके सदा न्याय करने का प्रयत्न करती रहीं-मरते दम तक। ये उसी परंपरा में थीं जिसमें उनके समकालीन पूना के न्यायाधीश रामशास्त्री थे और उनके पीछे झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हुई।- कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर उनके बनवाये हुए हैं।रानी अहिल्याबाई ने इसके अलावा काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं।
देवी अहिल्या बाई अपने कार्यो के लिए इतनी लोकप्रिय हुई की उनके जीवनकाल में ही लोग उन्हें देवी कहने लगे, आज भी इंदौर और पुरे देश में उनके नाम से कई स्थान और संस्थाए हैं। इंदौर में देवी अहिल्या के नाम से देवी अहिल्या विश्व विधालय, देवी अहिल्या अंतरराष्ट्रीय हवाई हड्डा आदि हैं।
४. क्रिकेटर राहुल द्रविड़
क्रिकेट दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलो में से एक हैं, उसके सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों की बात करे तो हमारे भारतीय सबसे ऊपर आते हैं। क्रिकेट ने दुनिया में भारत को एक अलग पहचान दिलाई हैं, पहचान दिलाने वालो में से ऐसा ही एक नाम मध्यप्रदेश के इंदौर के जाबाज क्रिकेटर राहुल द्रविड़ का भी हैं। द्रविड़ ने लम्बे समय तक भारतीय क्रिकेट टीम में अपना योगदान दिया और कई वर्षो तक टीम का नेतृत्व बतौर सफल कप्तान किया। इसलिए उन्हें प्लेयर ऑफ़ ईयर जैसे अहम् अवार्ड मिले और भारतीय क्रिकेट की 'दिवार' के रूप में अपनी अलग पहचान बनाई तथा इंदौर के नाम को विश्व पटल पर गौरवान्वित किया।
व्यक्तिगत जीवन :
राहुल द्रविड़ का जन्म मध्यप्रदेश की आर्थिक राजधानी इंदौर के एक मराठा परिवार में ११ जनवरी १९७३ को हुआ। इनके पिता शरद द्रविड़ एक किसान कंपनी में काम करते थे जबकि माता श्रीमती पुष्पा पेशे से वास्तुकला की प्रोफ़ेसर की प्रोफेसर थी। द्रविड़ प्राथमिकशिक्षा सेंटजोसेफ बॉयज़ हाईस्कूल से प्राप्त की व उन्होंने सेंट जोसेफ कॉलेज ऑफ कॉमर्स बैंगलोर से कॉमर्स से स्नातक किया।
राहुल द्रविड़ , पूर्व कप्तान भारतीय क्रिकेट टीम |
क्रिकेट में योगदान :
द्रविड़ क्रिकेट की दुनिया एक सफल नाम हैं ,जिसने भारत समेत दुनिया में इंदौर शहर को एक अलग पहचान दिलाई। उन्होंने क्रिकेट के क्षेत्र में अनेक उपलब्धिया हासिल की। क्रिकेट टीम के शीर्ष क्रम एक स्टाइलिश बल्लेबाज होने के साथ - साथ टेस्ट क्रिकेट में अधिकतम कैच लेने का रिकॉर्ड भी इनके नाम।
- राहुल ने सिर्फ 12 साल की छोटी सी उम्र में ही क्रिकेट में पदार्पण किया। वे कर्नाटक राज्य के लिए विभिन्न स्तरों जैसे कि – अंडर-15, अंडर-17 और अंडर -19 स्तर पर खेले।
- जब द्रविड़ पहली बार अपने विद्यालय की टीम के लिए खेले तो उन्होंने शतक बनाया। अपनी स्कूल टीम के लिए बेहतरीन बल्लेबाजी के अलावा, उन्होंने विकेट भी लिए।
- राहुल द्रविड़ बल्लेबाजी के साथ-साथ, विकेट कीपिंग भी कर रहे थे, हालांकि कुछ समय बाद उन्होंने कुछ पूर्व टेस्ट खिलाडियों की सलाह पर विकेट कीपिंग बंद कर दी।
- द्रविड़ ने पहली बार फरवरी 1991 में महाराष्ट्र में पुणे के खिलाफ रणजी ट्राफी में खेले। उस समय वह कॉलेज अध्ययन भी कर रहे थे। उन्हें जवागल श्रीनाथ और अनिल कुंबले के साथ खेलने का मौका मिला, जो भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
- उन्होंने 7वीं स्थिति में खेलते हुए एक मैच में 82 रन बनाये जो मैच ड्रॉ पर समाप्त हो गया ।
- उनका पहला पूर्ण सत्र 1991-92 में था, जब उन्होंने 63.3 के औसत पर 380 रन बना कर 2 शतक बनाये और दिलीप ट्रॉफी में उन्हें दक्षिणी जोन के लिए चयन भी हुआ।
- 9 मार्च 2012 को क्रिकेट की दुनिया को अलविदा कह दिया और उसके सभी प्रारूपों से संन्यास की घोषणा की, इसी के साथ 16 वर्ष की उम्र में शुरू की गई उनकी यादगार पारी का अंत हो गया।
राहुल का अंतर्राष्ट्रीय करियर :
- इंदौर के लाल राहुल द्रविड़ ने 1996 में सिंगापुर में एक दिवसीय मैच में श्रीलंका के खिलाफ अपने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कैरियर का पहला मैच खेला।
- उन्होंने दादा के नाम से जाने वाले सौरव गांगुली के साथ इंग्लैंड के खिलाफ करियर का पहले टेस्ट मैच की शुरुआत की।
- 1996-1997 के दौरे के दौरान दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्होंने अपना पहला टेस्ट शतक बनाया और सहारा कप में पाकिस्तान के खिलाफ अपना पहला एक दिवसीय अर्द्धशतक बनाया।
- वह भारतीय क्रिकेट टीम के तीसरे बल्लेबाज हैं, जिन्होंने एक टेस्ट मैचों की दोनों पारियों में शतक बनाया उनके पहले सुनील गावस्कर और विजय हजारे के नाम था रिकॉर्ड और न्यूजीलैंड के खिलाफ इस उपलब्धि को हासिल किया।
- 1999 के आईसीसी क्रिकेट विश्व कप में, उन्होंने 461 रनों के साथ सर्वाधिक स्कोर बनाया। वह इस टूर्नामेंट में लगातार दो शतक लगाने वाले एकमात्र भारतीय बल्लेबाज हैं।
- राहुल द्रविड़ ने 2001 में ईडन गार्डन में दूसरे टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने 180 रन बनाए, जिसकी बदौलत यह भारत के लिए खेला जाने वाला सबसे यादगार मैच माना जाता है।
- 2003-04 के दौरान द्रविड़ ने ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और पाकिस्तान के खिलाफ तीन दोहरे शतक बनाए।
- द्रविड़ ने १८ अलग - अलग साझेदारों के साथ ७५ बार शतकीय साझेदारी की हैं ,जो अपने आप में एक विश्व कीर्तिमान हैं।
- 2011, सितम्बर में इंग्लैंड के खिलाफ अपने आखिरी एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय मैच खेला और 2011-12 के सीएसओ में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ करियर का आखिरी टेस्ट मैच खेला।
राहुल द्रविड़ के पुरस्कार और उपलब्धियां
- वर्ष 1998 में उन्हें खेल के क्षेत्र में दिए जाने वाले सर्वश्रेष्ठ अर्जुन पुरस्कार से नवाज़ा गया।
- वर्ष 1999 के विश्व कप के सीएट क्रिकेटर होने का गौरव मिला।
- वर्ष 2000 में उन्हें विस्डेन क्रिकेटर ऑफ द ईयर 2000 के रूप में नामांकित किया गया था।
- वर्ष 2004 में उन्हें सर गारफील्ड सोबर्स ट्रॉफी विजेता (आईसीसी प्लेयर ऑफ़ द इयर के लिए सम्मानित) का सम्मान मिला।
- वर्ष 2004 में उन्हें “आईसीसी प्लेयर ऑफ द ईयर” के लिए सम्मानित किया गया।
- वर्ष 2004 में द्रविड़ को देश के नागरिक सम्मान 'पद्म श्री पुरस्कार' भी प्राप्त किया।
- वर्ष 2004 ही में आईसीसी 'टेस्ट प्लेयर ऑफ द ईयर' और उसी वर्ष 'एमटीवी यूथ आइकन' के रूप में नामांकित किया गया था।
- वर्ष 2006 में उन्हें अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल की टेस्ट टीम का कप्तान बनाया गया था।
- वर्ष 2011 में उन्हें देव आनंद के साथ एनआईडीटीवी इंडियन ऑफ द ईयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्राप्त किया था।
५. डॉ. राहत इन्दोरी
कवि सम्मलेन और उर्दू मुशायरो में इन्दोरियत को जिन्होंने नई पहचान दिलाई, जिनको सुनने के लिए साहित्य प्रेमी घंटो खड़े होकर इंतज़ार करते हो, अगर शायर की कही बात की जाये तो सबसे एक नाम आता हैं राहत इन्दोरी का। राहत इन्दोरी साहित्य और कविताओं के हर मंच पर गूंजने वाला नाम हैं, जिन्होंने हिन्दुस्तान के अलावा दुनिया के कई देश में इन्दोरियत की छाप अपनी शायराना शैली में छोड़ी हैं।
डॉ. राहत इन्दोरी की एक प्रसिद्ध शायरी का कुछअंश......
"सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में,किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है "
डॉ. राहत इन्दोरी (शायर और गीतकार ) |
"तूफ़ानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो,
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो"
व्यक्तिगत जीवन :
राहत इन्दोरी का जन्म इंदौर के एक कपडे मिल में कार्यरत राफतुल्लाह कुरैशी और मकबूल उन निशा बेगम के घर १ जनवरी १९५० को हुआ। वह उनके पिता के चौथी संतान थे। प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के नूतन स्कूल में हुई और इंदौर ही इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय, भोपाल से उर्दू साहित्य में एमए किया। तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश भोज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की।
राहत इन्दोरी बचपन से ही संघर्षशील स्वाभाव के थे ,लगभग १० आयु में ही वहसाइन चित्रकला में माहिर हो गए थे , उनके पास वेटिंग में साइन बोर्ड पेंटिंग के आर्डर होते थे। उनके द्वारा पेंटिंग किये गए साइन बोर्ड आज भी इंदौर की किसी पुरानी दुकानों में देखा जा सकता हैं।
कुछ दिनों तक उन्होंने कॉलेज में व्याख्यता के दौर पर पढ़ाया भी , देवी अहिल्या विश्वविद्यालय में उर्दू के प्रोफ़ेसर भी रहे डॉ. राहत इन्दोरी।
मुशायरो और कवी सम्मेलनों में प्रदर्शन:
डॉ राहत इंदोरी लगातार 40 से 45 साल से मुशायरों और कवी सम्मेलन में प्रदर्शन कर रहे हैं, कविता पढ़ने के लिए उन्होंने व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय स्तर यात्रा की है,उन्होंने भारत के लगभग सभी जिलों में कवि संप्रदायों में भाग लिया है और कई बार अमरीका, ब्रिटेन, कनाडा, सिंगापुर, मॉरीशस, केएसए, कुवैत, बहरीन, ओमान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल आदि से भी यात्रा की है।
अन्य तथ्य :
- राहत इन्दोरी ने सबसे पहले १९ वर्ष की उम्र में अपने कॉलेज में अपनी पहली शायरी सुनाई और तबसे आजतक पीछे मुड़कर नहीं देखा।
- इन्दोरी साहब कई बॉलीवुड फिल्मो के लिए गीत लिख चुके हैं जैसे मुन्ना भाई एमबीबीएस आदि।
- राहत इन्दोरी शुरआत में साइन बोर्ड पर पेंटिंग करते थे, बाद में बॉलीवुड फिल्मो के पोस्टर भी डिज़ाइन किया करते थे , अभी भी कई पुस्तकों के कवर पेज में अपनी चित्रकला को मूर्त रूप देते हैं।
- वह एक अच्छे शायर और कवि होने के साथ - साथ एक अच्छे फुटबॉल व हॉकी के खिलाडी भी रहे हैं , स्कूल और कॉलेज की अपनी टीम के कप्तान हुआ करते थे।
६. गायिका पलक मुच्छल
इंदौर की इस माटी में जन्मी पलक मुच्छल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की एक जानी - मानी भारतीय पार्श्र्व गायिका हैं जिनका नाम सिर्फ सिंगर होने के कारण ही नहीं बल्कि एक समाजसेविका के लिए जाना जाता हैं, पलक मुच्छल और उनके भाई पलाश संगीत और सार्वजानिक मंचो पर गीत गाकर किये गए चंदा संग्रह से अभी तक लगभग ६०० बच्चो की जान बचाने के लिए वित्तय सहायता प्रदान कर चुके हैं। पलक ने कई सुपरहिट बॉलीवुड फिल्मो के गीतों को अपनी मधुर आवाज़ दी हैं।
पार्श्र्व गायिका पलक मुच्छल |
व्यक्तिगत परिचय :
इंदौर की इस लाडो का जन्म इंदौर के मध्यम वर्गीय मारवाड़ी माहेश्वरी परिवार में ३० मार्च १९९२ को हुआ, उनकी माता अमिता और पिता राजकुमार मुच्छल हैं जो पेशे से निजी संस्था में लेखाकार हैं। उनका भाई पलाश भी एक अच्छा गायक हैं।
पलक ने इंदौर के ही एक कॉलेज से वाणिज्य से स्नातक किया हैं साथ ही हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की शिक्षा भी प्राप्त की हैं। उन्होंने चार साल की छोटी सी उम्र से ही गाना शुरू कर दिया था। पालक को १७ भाषाओ का अच्छा ज्ञान हैं और उनमे गीत गा भी सकती हैं।
सामाजिक योगदान :
- १९९७ में पलक महज ७ वर्ष की थी उसी समय भारत - पाक के मध्य कारगिल युद्ध हुआ, शहीद सैनिको के परिजनों की मदद के लिए पलक ने इंदौर शहर की दुकानों के सामने जाकर गीत गए और उस समय पालक ने २५००० हजार रुपयों का चंदा इकठ्ठा किया। इसी दौरान ओडिशा में बाढ़ आई तो बाढ़ पीड़ितों के लिए भी पलक मुच्छल आगे
- पलक ने जब गरीब बच्चो को फटे - पुराने कपड़ो में देखा तभी उन्होंने गरीब बच्चो के मदद का मन बना लिए। इसी दौरान इंदौर के लोकेश नाम के बच्चे हो हृदय सम्बन्धी बीमारी थी, उसके इलाज में बहुत रुपयों की जरुरत थी परन्तु पिता की प्रतिदिन की आय मात्र ५० रुपये थी। जब लोकेश के स्कूल प्रबंधन ने आर्थिक सहायता के लिए पालक से मदद मांगी तो पालक ने उसके लिए भी ५१ हजार रुपयों का चंदा इकट्ठा किया। इसके बाद तो कई बच्चो को नव जीवन देने का कार्य किया और कर रही हैं।
- वर्ष २००० में गुजरात में आये भूकंप पीड़ित परिवार के बच्चो के लिए भी पालक आगे आई और देश - विदेश में संगीत प्रदर्शनिया की जिसका नाम था 'दिल से दिल तक' के मध्यम से १० लाख रुपयों का चंदा इकट्ठा किया।
- गरीब और जरुरत मंद लोगो की मदद का सिलसिला भारत तक ही सीमित नहीं था बल्कि वर्ष २००३ में हृदय रोग से पीड़ित पाकिस्तानी बच्ची की भी मदद की पेशकश पलक ने की, जो भारत में अपना ईलाज कराने आई थी।
- दिसम्बर 2006 तक पलक ने अपने धर्माध संगठन 'पलक मुच्छल हार्ट फाऊंडेशन' के लिए कुल 1.2 करोड़ रुपयों की राशि ईकट्ठा कि थी जिससे 234 बच्चों का ऑपरेशन किया गया। पैसों की कमी की वजह से किसी बच्चे का ऑपरेशन ना रुके, ये सुनिश्चीत करने के लिए पलक मुच्छल हार्ट फाऊंडेशन को दस लाख रुपये ओवरड्राफ्ट की अनुमती दी
हिंदी फिल्मो में पार्श्र्व गायक के रूप में कदम रखा
वर्ष 2011 में पलक ने हिन्दी फिल्मों में पार्श्व गायिका के रूप में अपना कदम रखा परन्तु उनका ह्रदय रोग पीड़ित बच्चों की मदद करने का अभियान यही नहीं रुका बल्कि और तेज हो गया । मई 2013 तक उन्होने पलक मुच्छल हार्ट फाऊंडेशन के लिए तकरीबन ढाई करोड़ रुपयों की राशि जमा की थी जिससे 572 बच्चो का ऑपरेशन सफलता पूर्वक हो चूका हैं और उनकी जान बचाई जा सकी। कई ह्रदय रोग पीड़ित बच्चे अब भी उनकी इंतजार सूची में है जिनकी मदद के लिए इंदौर की बेटी पलक मुच्छल का प्रयास अभी भी जारी हैं।
पलक की उपलब्धिया :
- जब २००१ में वह मात्र ९ साल की थी तब ही पलक का पहला एल्बम 'चाइल्ड फॉर चिल्डर्नस' टिप्स म्यूजिक के द्वारा रीलीज़ की गई थी। इसके बाद तो 'आओ तुम्हे चाँद पर ले जाए' और 'बेटी हूँ महांकाल की' जैसे कई एल्बम आते रहे।
- २००६ में पलक इंदौर से मुंबई चली गई अपने व्यवसाय के लिए , वहा टी - सीरीज़ ने २०११ में 'जय जय देव गणेश' नामक एल्बम लांच किया।
- २०११ में फ़िल्मी दुनिया में पार्श्र्व गायिका के रूप में कदम रखा और 'एक था टाइगर' और 'आशिकी -२' जैसी सुपरहिट फिल्मो के गीतों को अपनी मधुर आवाज़ के सुर में बंधा।
- २०१४ में मीका सिंह के साथ किक फिल्म में 'जुम्मे की रात' जैसा हिट गाना गया।
- पलक बॉलीवुड में अपनी सफलता का श्रेय सलमान खान को देती हैं।
पलक को प्राप्त हुए अवार्ड और पुरुस्कार :
पलक द्वारा गायन और सामाजिक सरोकार के लिए किये गए उल्लेखनीय कार्यो के लिए उन्हें कई संस्थाओ और सरकार द्वारा पुरुस्कृत और सम्मानित किया जा चूका हैं। प्राप्त पुरुस्कारो में शामिल हैं राष्ट्रीय बाल पुरस्कार (2000), रजत पदक,राष्ट्रीय समन्वय पुरस्कार (2001), राजीव गांधी पुरस्कार (2005),राजीव गांधी पुरस्कार (2005),सोनी टीवी कैडबरी बॉर्नव्हीटा कॉन्फीडन्स च्यम्पीयनशीप (2006),गिनीज़ बुक ऑफ रिकॉर्ड्स तथा लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड्स ,युवा ओजस्वीनी अलंकारन पुरस्कार (2006),लापता" (एक था टायगर) गाने के लिए 19वा लायन्स गोल्ड पुरस्कार (2012),10 वा वार्षिक केल्वीनेटर ग्रेट वुमन अचिवर 2011 पुरस्कार,19 वा सुर आराधना पुरस्कार (2012), केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड और महाराष्ट्र बोर्ड द्वारा सातवीं की नैतिक पाठ्यक्रम में पालक के बारे में लिखा गया हैं।
पलक द्वारा किये गए सामाजिक सरोकार के कार्यो और गरीब बच्चो की मदद का चर्चा कई बार राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मिडिया की सुर्खिया बनी चुकी हैं।
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