बिहार के सबसे नक्सली क्षेत्र गया जिले के इमामगंज में नक्सली और पुलिस की गोलियों की आवाज़ सुनकर बड़े हुए अभिजीत गौरव ने बिहार को गौरवान्वित किया है। अभिजीत को "फॉल ऑफ गिरगिट 1947" फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में अपनी बहुमुखी प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला हैं। वह मोक्ष और ज्ञान की भूमि गया जिले के अति नक्सल प्रभावित इमामगंज प्रखंड के वभंडीह के रहने वाले हैं।
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मां राजनीति में और पिता शिक्षाविद् हैं
अभिजीत गौरव के पिता संतोष कुमार गया के शेरघाटी में एक कॉलेज को संचालित करते हैं और उनकी मां पुष्पलता देवी गया ज़िला परिषद कि सदस्य यानी पार्षद रह चुकी हैं। गौरव की शुरुआती शिक्षा वहीं के सरकारी स्कूल में हुई है और स्नातक गया कॉलेज से किया । फिल्मी शौक़ पूरा करने के लिए वह दिल्ली के रास्ते मुंबई चले गए। जहां उन्हें कई टीवी सीरियल में सिनेमैटोग्राफर के रूप में काम करने का मौका मिला। वह मात्र 24 साल की उम्र में असिस्टेंट डायरेक्टर बनकर अपनी प्रतिभा को निखारने का मौका उन्हें मिला। अभिजीत के इस सफलता से उनके परिवार और दोस्त बेहद खुश हैं। अभिजीत एक मित्र बताते हैं कि उन्होंने बेहद छोटी से उम्र में फिल्म जगत में एक अच्छी पहचान स्थापित की हैं, इसलिए वह लोग बेहद खुश हैं और उन्हें पूरा विश्वास है कि अभिजीत आने वाले दिनों में बेहद आगे जायेगा साथ ही अपने जिले, प्रदेश और देश को गौरवान्वित करने का अवसर देगा
टी- सीरीज से की है कैरियर की शुरुआत!
लॉक डाउन में अपने घर आए अभिजीत ने मीडिया से चर्चा कहा था कि फिल्म के क्षेत्र में जाने की चाहत उनकी बचपन से ही थी, ग्रेजुएशन के बाद दक्षिण बिहार सेंट्रल विश्वविद्यालय से उन्होंने लॉ की पढ़ाई के लिए नामांकन लिया था परन्तु इसे बीच में ही छोड़कर दिल्ली चले गए जहां उन्होंने टी - सीरीज से एक वर्ष का फिल्म मेकिंग का कोर्स किया। उसके बाद अपने सपने को पूरा करने के लिए मुंबई चले गए। मुंबई जाकर उन्होंने कई लघु यानी शॉर्ट फिल्म और धारावाहिकों में कार्य किया। अभिजीत ने "झांसी की रानी" सीरियल से अपने कैरियर कि शुरुआत की और उसके बाद "तेनालीराम" व "विघ्नहर्ता गणेश" जैसे सीरियल में काम किया। वह गुफी पेंटल के प्रोडक्शन हाउस के साथ मिलकर उन्होंने "नई सुबह" सीरियल में भी काम किया।
परिवार के लोग नहीं चाहते थे बॉलीवुड में जाए अभिजीत
अभिजीत ने कहा कि उनके पिता शिक्षाविद् और राजनीति में बेहतर रुचि रखने वाले हैं और वह उन्हें भी शिक्षा के क्षेत्र में कैरियर बनाने की सलाह दे रहे थे। जब वह लॉ कि पढ़ाई को अधूरी छोड़ दिल्ली गए तो पिता के साथ परिवार के कई सदस्य उनसे नाराज़ थे, लोग उन्हें इकलौता बिगड़ैल कहने लगे थे । घर वाले अनिच्छा के बाद भी अभिजीत का आर्थिक रूप से सहयोग करते रहे .
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