कहते हैं, कि संघर्ष जीवन में हर एक चुनौतियों से लड़ना सीखते हैं और संघर्षशील व्यक्ति विषम परिस्थितियों से नहीं डरते बल्कि उनको अपनी ताकत बना लेते हैं। इतिहास गवाह हैं जिन्होंने चुनौतियों से लड़ना सीखा उन्होंने है इतिहास बनाया है । एक ऐसी कहानी हैं यूपी की तेज तर्रार आईएएस अधिकारी किंजल सिंह कि। जिन्होंने 6 माह की उम्र में पिता और कॉलेज के समय मां को खो दिया था। लेकिन किंजल ने आईएएस बनकर अपने माता - पिता के सपने को पूरा किया।
परिचय
5 जनवरी 1982 को किंजल का जन्म एक छोटा से परिवार में हुआ। जिसमें उनकी माता विभा सिंह, पिता के. पी. सिंह और एक छोटी प्रांजल थी। पिता पुलिस विभाग में डीएसपी के पद पर पदस्थ थे ।
शिक्षा:
प्रारंभिक शिक्षा गोरखपुर में हुआ उसके बाद philosophy honors से स्नातक दिल्ली के लेडी श्री राम कॉलेज से लिया। इस दौरान उन्होंने यूनिवर्सिटी ही नहीं टॉप किया बल्कि इंडियन फिलोसॉफिकल कांग्रेस द्वारा गोल्ड मेडल से भी सम्मानित हुई। उन्होंने एलएलबी भी किया।
कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित हो चुकी हैं
किंजल सिंह अपने कठोर परिश्रम के लिए जानी जाती है उनकी मेहनत की बदौलत उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
* देवी अवॉर्ड -2015
* शक्सियत अवॉर्ड -2014
* Late APJ Abdul Kalam award and many more
6 माह से भी छोटी उम्र में छीन गया पिता का साया
जब घर में गुड़ियों से खेलने की उम्र होती है उस समय एक 6 माह की लड़की अपनी मां के साथ यूपी के बलिया से राजधानी दिल्ली तक का सफर तय कर के उच्चतम न्यायालय आती और पूरे दिन अदालत कि चौखट पर गुजारने के बाद रात में फिर उसी सफर पर निकल पड़ती । उस समय उन्हें यह अंदाज़ा भी नहीं होगा कि यह कोर्ट का संघर्ष 31 वर्ष तक चलेगा तब जा कर पिता को न्याय मिलेगा। यह जद्दोजहद आखिर 5 जून 2013 को उस वक़्त खत्म हुई जब लखनऊ में सीबीआई की एक विशेष अदालत फैसला सुनाते हुए कहा "1982 को 12-13 मार्च की दरमियानी रात को गोंडा में पदस्थ डीएसपी के.पी. सिंह की हत्या के आरोप में उनके ही साथी 18 पुलिस वालों को दोषी ठहराया गया। जिस वक्त अदालत ने फैसला सुनाया उस वक़्त किंजल सिंह बहराइच कि कलेक्टर बन चुकी थी।
किंजल के पिता केपी सिंह बनना चाहते थे आईएएस अधिकारी
किंजल के पिता की जब अपने ही सहकर्मियों ने एनकाउंटर कर दिया उस समय वह आईएएस कि लिखित परीक्षा पास कर चुके थे । पिता की मौत के समय किंजल 6 माह से भी कम उम्र की थी जबकि उनकी छोटी बहिन प्रांजल का जन्म तो पिता की मौत के 6 माह बाद हुआ था।
उनकी मां चाहती थी कि उनकी बेटियां आईएएस बने और पिता के अधूरे रह गए सपने को पूरा करे। "जब वह कहती थी कि उनकी बेटियां आईएएस अधिकारी बनेगी तो लोगों हंसते थे।"
सर से पिता का साया उठ जाने के बाद मां के कंदो पर आ गई जिम्मेदारी
बचपन में पिता कि मौत हो गई तो किंजल की मां विभा सिंह पर पूरी जिम्मेदारी आ गई । विभा सिंह कोषाधिकारी थी लेकिन उनकी सलैरी का अधिकांश हिस्सा तो अपने पति के लिए लड़ रही कानूनी लड़ाई में ही खर्च हो जाता था।
लेडी श्री राम कॉलेज में हुआ दाखिला
किंजल को 12 वीं के बाद दिल्ली के नामी लेडी श्रीराम कॉलेज में दाखिला मिल गया। इसी दौरान उन्हें पता चला कि मां विभा सिंह को कैंसर की बीमारी हैं और वो भी अंतिम स्टेज में हैं। इस दौरान किमोथैरीपी के कई राउंड से गुजरने जाने के बाद विभा सिंह की हालत बेहद गंभीर हो गई थी। लेकिन इस दुनिया में अपनी बेटियों को अकेले छोड़ने के डर से कैंसर जैसी बीमारी से लड़ने कि कोशिश जारी थी। किंजल बताती हैं, "एक दिन डॉक्टर ने मुझसे कहा, "क्या तुमने कभी अपनी मां से पूछा है कि वे किस तकलीफ से गुजर रही हैं?" जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, मैंने तुरंत मां के पास जाकर उनसे कहा, मैं पापा को इंसाफ दिलवाऊंगी, "मैं और प्रांजल आइएएस अफसर बनेंगे और अपनी जिम्मेदारी निभा लेंगे। उन्होंने कहा मां इस बीमारी से लड़ना बन्द कर दो, इसे सुनकर मां के चेहरे पर सकून था । कुछ ही देर बाद विभा सिंह कोमा में चली गई और उसके कुछ दिनों बाद विभा ने अपनी बिटिया किंजल और प्रांजल को अकेला छोड़ इस दुनिया से हमेशा के लिए विदाई ले ली ।
वर्ष 2004 में किया यूनिवर्सिटी टॉप
मां की मौत के दो दिनों बाद ही किंजल सिंह को वापस दिल्ली लौटना पड़ा क्योंकि कुछ ही दिन बाद उनकी परीक्षा थी। इसी वर्ष किंजल ने यूनिवर्सिटी टॉप भी किया। इसी दौरान उन्होंने अपनी छोटी बहन प्रांजल को भी दिल्ली बुला लिया और दोनों दिल्ली में ही साथ रह कर आईएएस कि तैयारी करने लगी। किंजल कहती हैं कि "हम दोनों दुनिया में अकेले रह गए। हम नहीं चाहते थे कि किसी को भी पता चले कि हम दुनिया में अकेले हैं।"
दूसरे ही प्रयास में ऑल इंडिया 25 वीं रैंक हासिल की
2008 में दूसरे ही प्रयास में किंजल का आईएएस और प्रांजल का पहले ही प्रयास में आईआरएस के लिए चयन हो गया। फिलहाल किंजल उत्तरप्रदेश सरकार में के पंचायती राज विभाग में सचिव हैं ।
किंजल अपनी मां विभा सिंह को आदर्श मानती हैं और कहती हैं कि "बहिन प्रांजल और मौसी के बिना कुछ भी संभव नहीं था।"
किंजल सिंह कहती हैं कि में मैने अपनी कमजोरी की सदैव अपनी ताकत बनाया हैं। वह बताती हैं कि हम दोनों बहने हॉस्टल में रखकर हॉलिडे के दिन भी पढ़ाई करती थी, सभी लोगों घर चले जाते थे लेकिन हमारे पास अपना कोई घर था ही नहीं । क्योंकि हमारा गुरुकुल ही हमारा घर था । वह नियमित 17-18 घंटे पढ़ाई करती थी।
इसी का परिणाम था कि किंजल ने 2008 में दूसरे ही प्रयास में 25 वीं रैंक हासिल कर आईएएस बनी जबकि पहले ही प्रयास में प्रांजल ने 252 वाँ रैंक प्राप्त कर आईआरएस बन गई ।
कलेक्टर रहते पिता को मिला न्याय
किंजल सिंह जुझारू और मेहनती लड़की थी, पहले पिता और बाद मां के चल बसने के बाद भी हार नहीं मानी और आईएएस बनकर पिता के सपने को पूरा भी किया और उन्हें न्याय भी दिलाया। किंजल कहती हैं कि "मेरे पिता की हत्या हुई उस वक्त वो आईएएस की परीक्षा पास कर चुके थे। उनका इंटरव्यू बाकी था। तभी से मेरी मां के दिमाग में ये ख्याल था कि उनकी दोनों बेटियों को सिविल सर्विस की परीक्षा में बैठना चाहिए । उसी सपने को हम लोगों ने पूरा किया।" जिस वक्त किंजल के पिता की हत्या हुई थी उस वक्त वो गोंडा जिले में उप पुलिस अधीक्षक यानी डीएसपी के पद पर तैनात थे । मार्च 1982 में गोंडा जिले के माधोपुर गांव में उनके ही साथी पुलिस वालों ने उनकी हत्या कर दी गई थी । जिसमें मामले में जून 2013 में उन्हें न्याय मिला और जब उनके पिता को न्याय मिला उस समय किंजल बहराइच में डीएम थी।
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