हिंदुस्तान के युवा दिनों - दिन हमें नए अवतार में नजर आते हैं। भारत में नए - नए स्पोर्ट्स खिलाड़ियों के बारे में सुनने को मिला रहा है जो हिंदुस्तान का नाम पुरे विश्व में रोशन कर रहे हैं। अक्सर हम देखते हैं की खेल के साथ हमेशा से ही कुछ न कुछ विवाद जुड़े ही रहते हैं फिर चाहे वों खिलाड़ियों और अथॉरिटी के बीच हो या फिर सरकार और अथॉरिटी के बीच जो हमेशा पूरे मीडिया में सुर्खियां बटोरती है।
28 वर्षीय श्रीनिवास गौड़ा ने धान के खेत में भैंसे के साथ 142 मीटर की दूरी सनसनीखेज तेज़ अंदाज़ में पूरी की हैं जो खेत कीचड़ वाला था। वह कर्नाटक के समुद्रतटीय शहर मेंगलुरु के एक गांव में पारम्परिक खेल ‘कंबाला’ में हिस्सा ले रहे थे। श्रीनिवास गौड़ा ने ये दौड़ मात्र 13.42 सेकेंड में तय की थी। ओलंपिक खेलों में धावक बोल्ट के नाम 9.58 सेकेंड में 100 मीटर की दूरी तय करने का रिकॉर्ड है। सोशल मीडिया में लगातार यह चर्चा हो रही है कि गौड़ा ने 100 मीटर की दूरी तय करने में 9.55 सेकेंड का समय लिया। इसके बाद सोशल मीडिया में इस बात की चर्चा होने लगी कि गौड़ा ने उसैन बोल्ट के ओलंपिक रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ एक नया कीर्तिमान रचा हैं।
श्रीनिवास गौंडा ने भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के ट्रायल में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है। उन्हें केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू ने भारतीय खेल प्राधिकरण के ट्रायल में हिस्सा लेने की सलाह दी थी। श्रीनिवास गौडा ने कहा, “मैं भारतीय खेल प्राधिकरण के ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए फ़िट नहीं हूं. मेरे पांव में चोट लग गई थी और मेरा ध्यान भी कंबाला पर है, मुझे धान के खेतों में भैंसों के साथ दौड़ने की आदत है।”
कंबाला अकादमी के संस्थापक सचिव प्रो. गुनापाला कादंबा ने कहा, “केंद्रीय खेल मंत्री की ओर से मिली पेशकश का हम स्वागत करते हैं। हम उसे ख़ारिज नहीं करते, हम इसे कंबाला के लिए बड़े सम्मान के तौर पर देख रहे हैं लेकिन वह ना तो आज ट्रायल में हिस्सा ले सकता है और न ही अगले कुछ समय तक वह इसके लायक हो पाएगा।
क्या कंबाला है?
कंबाला कर्नाटक के तटीय इलाकों में खेला जाने वाला एक पांरपरिक खेल है। जो स्थानीय भाषा में कंबाला का शाब्दिक अर्थ है ‘कीचड़ से भरे खेत जिसमें धान उग रहा है।’ यह स्थानीय खेल हैं, जो प्राचीन परम्परा पर आधारित हैं।
इस खेल में हिस्सा लेने वालों को 132-142 मीटर के खेत में एकसाथ बंधे दो भैसों के साथ दौड़ना होता है। यह खेल कई बार विवादों में रहा है और इसे अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु और कर्नाटक में इस पर रोक लगा दी थी।
इसके दो साल बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने कंबाला के सभी कार्यक्रमों पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया था। प्रो. कादंबा कहते हैं कि हाई कोर्ट के प्रतिबंध का जवाब देते हुए इसके आयोजकों ने कहा था कि वो इस खेल और मानवीय बनाएंगे। वर्ष 2018 में कर्नाटक में कंबाला को फिर से शुरू किया गया लेकिन साथ ही कई शर्तें भी लगा दीं। इन शर्तों में कोड़ों के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई, लेकिन इस खेल पर अब भी ख़तरा मंडरा रहा है।
कौन हैं श्रीनिवास गौड़ा और क्या हैं पूरा मामला
Credit: the week |
श्रीनिवास गौंडा ने भारतीय खेल प्राधिकरण (SAI) के ट्रायल में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया है। उन्हें केंद्रीय खेल मंत्री किरण रिजिजू ने भारतीय खेल प्राधिकरण के ट्रायल में हिस्सा लेने की सलाह दी थी। श्रीनिवास गौडा ने कहा, “मैं भारतीय खेल प्राधिकरण के ट्रायल में हिस्सा लेने के लिए फ़िट नहीं हूं. मेरे पांव में चोट लग गई थी और मेरा ध्यान भी कंबाला पर है, मुझे धान के खेतों में भैंसों के साथ दौड़ने की आदत है।”
कंबाला अकादमी के संस्थापक सचिव प्रो. गुनापाला कादंबा ने कहा, “केंद्रीय खेल मंत्री की ओर से मिली पेशकश का हम स्वागत करते हैं। हम उसे ख़ारिज नहीं करते, हम इसे कंबाला के लिए बड़े सम्मान के तौर पर देख रहे हैं लेकिन वह ना तो आज ट्रायल में हिस्सा ले सकता है और न ही अगले कुछ समय तक वह इसके लायक हो पाएगा।
क्या कंबाला है?
कंबाला कर्नाटक के तटीय इलाकों में खेला जाने वाला एक पांरपरिक खेल है। जो स्थानीय भाषा में कंबाला का शाब्दिक अर्थ है ‘कीचड़ से भरे खेत जिसमें धान उग रहा है।’ यह स्थानीय खेल हैं, जो प्राचीन परम्परा पर आधारित हैं।
इस खेल में हिस्सा लेने वालों को 132-142 मीटर के खेत में एकसाथ बंधे दो भैसों के साथ दौड़ना होता है। यह खेल कई बार विवादों में रहा है और इसे अक्सर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पशु अधिकार कार्यकर्ताओं की आलोचनाओं का शिकार होना पड़ता है। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु और कर्नाटक में इस पर रोक लगा दी थी।
Credit: The Quint |
इसके दो साल बाद कर्नाटक हाई कोर्ट ने कंबाला के सभी कार्यक्रमों पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश दिया था। प्रो. कादंबा कहते हैं कि हाई कोर्ट के प्रतिबंध का जवाब देते हुए इसके आयोजकों ने कहा था कि वो इस खेल और मानवीय बनाएंगे। वर्ष 2018 में कर्नाटक में कंबाला को फिर से शुरू किया गया लेकिन साथ ही कई शर्तें भी लगा दीं। इन शर्तों में कोड़ों के इस्तेमाल पर भी रोक लगा दी गई, लेकिन इस खेल पर अब भी ख़तरा मंडरा रहा है।
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